एक कविता कहना चाहती हूं
जताना चाहती हूं अपनी कविता से
कि कैसे बनती है कविता
इतनी माथापच्ची के बाद निकली ये
कविता जाने कितनों को आएगी ना- 'पसंद'
पर खैर एक स्वादिष्ट कविता की
रेसिपी कौन नहीं पढ़ना चाहेगा
इस कविता प्रतियोगिता में मेरा दिल
कवियित्री की उपमा से विभूषित भी होना चाहेगा
चलो अब बात हम कविता की करते हैं
अन्यथा न लें तो इस साहित्य की चर्चा ही करते हैं
अंदर से महसूस करने पर ही
पता चलता है बेचारी कविता कितनों में बंटी है
कभी 'जीवन' की तो कभी 'प्रेम' की
शेष बची तो 'दर्द' में गंठी है
दर्द की कविता की तो हालत खराब है यहां
साहित्य के ऐसे-ऐसे अनछुए पहलु को छुआ है
कि हर जगह दर्द है वहां
आश्चर्य तो तब होता है जब ये
कविता के साथ 'भावना' भी रोने लगती है
पूछने पर पता चलता है भावना
तो कविता के साथ जन्मजात बंधी है
कविता 'गूंगी' और भावना 'अंधी' है
जीवन और प्रेम की कविता की कथा
फिर कभी सुनाउंगी
अगली बार कविता के साथ
एक सिरदर्द की गोली लेकर आउंगी...
5 comments:
hasya bhi kuch sandesh bhi bhai waah...
बहुत बढ़िया मिश्रण...मजा आया.
पूछने पर पता चलता है भावना
तो कविता के साथ जन्मजात बंधी है
अगली बार जब सुनाईएगा तो सुनेंगे
आज आपकी कई रचनाएँ पढ़ी, आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है, पढ़कर अच्छा लगा, बहुत शुभकामना!
bahut achchhi kavita ke liye dhanybad.
Dr Maharaj Singh parihar
www.vichar-bigul.blogspot.com
Post a Comment