मै विज्ञान की छात्रा रही हू साहित्य या भाषा ज्ञान नहीं के बराबर है उर्दू शायरी व् गजले ऊपर से निकल जाती है इसलिए खुद को लेखिका मानने में संकोच होता है लिखती वो हू जो दिल में हो ,इसलिए यह लगभग "खुद का खुद को अर्पण " जैसा होता है सो ढेरो सन्देश की दरकार नहीं , मगर जो मिलते है मेरी झोली भरने को काफी है, एक चीज की हिमायती हू वो है' नवाचार " , इस वजह से लिखने में देरी संभव है { घरेलु कारणों को लिख कर सहनुभूति बटोरने की इच्छा नहीं ] , फिलहाल फेसबुक के सन्देश डब्बे को डस्टबिन समझने वाली मै उसे पढ़कर भाव विभोर हू और एक कहानी इसी सन्दर्भ में उतारने की तैयारी है -इन्तजार करे /
1 comment:
इंतज़ार रहेगा !
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