पुरानी इमारतों सी जर्जर होती औरते
ऊपर से लिपि पुती अंदर से खोखली होती औरते
प्रेम की तलाश में भटक कर बावरी होती औरते
जीवन सुख को तराजू में तौलकर सौदागर होती औरते
मासूमियत को दबा कर आक्रोशित होती औरते
निश्छल प्रेम के दाम पर छली जाती औरते
यकीनन दिल से जुड़ कर टूट जाती औरते
विशाल दुनियां को बेहद छोटी आँखों से देखती औरते
छोटे से सुख को पा कर मुस्कुरा देती औरते
बड़े से दुःख को लेकर जीती रहती ये औरते
कमजोर पुरुषो की बदौलत मजबूत होती औरते
औरतों के स्नेह पर अविश्वास जताती औरते
ये औरते हम सभी के आस पास घूमती है ये औरते ।।
8 comments:
सुन्दर अभिव्यक्ति । ब्लौगर का फौलोवर विजेट भी लगाइये ताकि ब्लौब को फौलो किया जा सके और छपने की खबर मिलती रहे ।
बढिया लिखा है आपने।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
Bahut hi bhdiya Parveena ji
बहुत सुंदर रचना ! सचमुच ! औरतें ऐसी भी और वैसी भी ... आधी जग संसार इन्ही का
हम सभी के आसपास घूमती हैं ये औरतें...सुन्दर अभिव्यक्ति !!
ये औरते फूलों सी,तितली सी,क्यारी सी औरतें
रंगीन,नाजुक,महकती सी औरतें ...
बहुत सुंदर कविता। सच है ऐसी ही हैं न हम औरतें।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
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