इक सपना सा जगा था आंखों में
उमंग का, उल्लास का, तरंग का
पैदा हुई थी सिरहन मन मस्तिष्क में
सोचा था यही वो नवजीवन है
जिसका मुझे इंतजार था
मगर आंधी के झोंके की तरह
न जाने कैसे सारा उल्लास उमंग
तरंग काफूर हो गया
अब रह गया जीवन में फिर
वही बोझिल सा इंतजार
इंतजार और इंतजार...
प्रवीणा
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